
चित्र विवरण : सन् 1925 मे स्कोप्स पर चल रहे मुकदमे के दौरान सुनवाई का दृश्य
क्या आप कल्पना कर सकते है कि किसी अवधारना को पढ़ाने को लेकर एक स्कूल अध्यापक पर मुकदमा चले, वो भी किसी तीसरी दुनिया के पिछडे देश मे नही अपितु अमेरिका जैसे देश मे।
हैरान न हो ऐसा हुआ है, सन् 1925 मे अमेरिका के टेनेसी राज्य के डायटन शहर मे जीव विज्ञान के स्कूली शिक्षक जॉन टी स्कोप्स पर छात्रों को डार्विन के उद्विकास का सिद्धांत को पढ़ाने के कारण उन पर मुकदमा चला था। दरअसल संयुक्त राज्य अमेरिका के टेनेसी राज्य मे 1920 के दशक ईसाई कट्टरपंथियों का प्रभाव था, इस वजह से मार्च, 1925 मे टेनेसी मे एक कानून पारित हुआ था, जिसे बटलर एक्ट भी कहा जाता है, इस कानून के अनुसार टेनेसी राज्य के स्कूलों मे मानव के आविर्भाव को लेकर बाइबल मे वर्णित वृतांत से इतर कुछ भी पढ़ाना गैर कानूनी था। बस जॉन टी स्कोप्स ने इसी कानून का उल्लंघन किया, उन्होंने अपने छात्रों को डार्विन द्वारा प्रतिपादित उद्विकास के सिद्धांत के बारे मे पढ़ाया । उनके खिलाफ अभियोग लगाया गया व मुकादमा चलाया गया। 21 जुलाई को टेनेसी क्रिमिनल कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए उनपर 100 डॉलर का जुर्माना लगाया (उस समय के हिसाब से बड़ा जुर्माना ), इसके उपरांत यह मामला ऊँची अदालत मे पहुंचा जहाँ बटलर एक्ट को सही बताते हुए, स्कोप्स को उद्विकास का सिद्धांत को पढ़ाने का दोषी घोषित किया गया। वहां की प्रेस ने इस मुकदमे को स्कोप्स मंकी ट्रायल का नाम दिया। स्कोप्स ने इसके बाद पढ़ाना छोड़ दिया, व भूगर्भ विज्ञान की पढ़ाई के लिए वे शिकागो चले गए, लेकिन प्रेस व कट्टरपंथी उनके पीछे पडे रहे, जिससे वे अवसाद मे चले गए। उन्हें टेनेसी राज्य मे काम करने से प्रतिबंधित तक कर दिया गया, इन सबसे परेशान होकर 1930 के आस पास वे टेनेसी छोड़ कैंटकी मे बस गए। इस घटना के लगभग चार दशक बाद सन् 1967 मे बटलर एक्ट खत्म किया गया ।
स्कूलों मे क्या पढ़ाया जाएगा, अगर ये किसी धर्म के हिसाब से निर्धारित किया जायें, तो इस किस्म की कई त्रासदियां सामने आती है। ऐसा सिर्फ एक उदाहरण नही है, इतिहास मे ऐसे ढेरों वाकये भरे हुए है। गैलिलियो जैसे महान वैज्ञानिक तक को अपनी प्रस्थापनाओ के कारण मुश्किले झेलनी पड़ी थी। अपने ही देश का उदाहरण अगर ले, यहाँ के एच आर डी राज्य मंत्री सत्यपाल सिंह ने कहा था, कि डार्विन का सिद्धांत पूर्णतया गलत है और तो और देश के प्रधानमंत्री ने साइंस कांग्रेस मे यहाँ तक कहा था कि शिव द्वारा गणेश को हाथी का सर लगाना, प्राचीन भारत मे प्लास्टिक सर्जरी के होने का उदाहरण है । जब मिथको को वैज्ञानिक तथ्य बनाकर पेश किया जाता है व वैज्ञानिक तथ्यों को प्राचरित करने मे बाधायें डाली जाती है, तब अंजाम काफी बुरे हो सकते है। और ऐसा राज्यसत्ता जानबूझकर करती है ताकि जनता मे वैज्ञानिक चेतना का प्रादुर्भाव न हो, वो तार्किक न बने । जिससे राज्यसत्ता से वह किसी भी मुद्दे पर सवाल ही न कर पाये। जनता की इसी अज्ञानता का इस्तेमाल राज्यसत्ता अपने शोषणात्मक एजेंडे को लागू करने के लिए करता है ।
अत : यह जरूरी है कि लोगो के बीच वैज्ञानिक चेतना व तार्किकता का प्रचार प्रसार किया जाए। आसान भाषा मे विज्ञान के सिद्धांतो को लोगो समझाया जाए। स्कूलो मे भी अगर शिक्षण पद्धति मे कोई खामी सामने आये तो उसे लेकर सरकार पर सवाल खड़े किये जाने चाहिए । ये वर्तमान के ऐसे दायित्व है जो विज्ञान मे रुचि रखने वाले हर छात्र, शोधार्थी व शिक्षक के कंधो पर है।

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