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EIA मे प्रस्तावित पर्यावरण विरोधी सुधार वपास लो !

Writer's picture: Scientists for SocietyScientists for Society

आज इस बात से इंकार नही किया जा सकता कि पूंजी की निर्बाध लूट के कारण पूरा विश्व पर्यावरणीय संकट से गुजर है । मुनाफे की अंधी हवस ने पारिस्थितिकी तंत्र को बहुत नुकसान पहुंचाया है । भारत भी इस से अछूता नही है । भारत मे 1991 मे निजीकरण,उदारीकरण व भूमंडलीकरण की नीतियाँ लागू होने के बाद से ही जिस अभूतपूर्व गति से भारत की प्राकृतिक संपदाओं का दोहन हुआ उसके कारण से देशभर मे वन्य क्षेत्रों, नदियों, वेटलैण्ड्स व उनपर आश्रित जीवों के अस्तित्व खतरे मे आ चुका है ।

भारत की जनता द्वारा संघर्ष के जरिये पर्यावरण संरक्षण के लिए जिन कानूनों को बनवाने के लिए पूर्ववर्ती सरकारें मजबूर हुयी थी, आज मौजूदा भाजपा सरकार उन कानूनों को भी तिलांजलि देकर भारत की प्राकृतिक संपदा को देशी विदेशी पूंजी की लूट के लिए खुला छोड़ देने के लिए आमादा है ।

मार्च माह मे भाजपा सरकार ने EIA यानी एनवायरनमेंट इम्पेक्ट एसेसमेंट के प्रावधानों मे बदलाव प्रस्तावित किए थे । ज्ञात हो कि किसी भी औद्योगिक परियोजना को शुरू करने से पहले EIA के तहत उक्त परियोजना के कारण उस क्षेत्र विशेष पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन किया जाता है व उस क्षेत्र के लोगो की भी राय (पब्लिक कॉन्सल्टेशन) जानी जाती है। अगर उक्त परियोजना EIA के सारे नियामको पर खड़ी नही उतरती है तो फिर उसे मंजूरी नहीं देने का भी प्रावधान है । परंतु नया मसौदा EIA जो इस वर्ष मार्च मे पेश किया गया था, उसमे कई खामियाँ है । 40 औद्योगिक परियोजनाएं जैसे मिट्टी व रेत खनन, सोलर थर्मल पावर प्लांट आदि के लिए अग्रिम एनवायरनमेंटल क्लीयरेंस लेने से ही छूट दे दी गयी है ।

बी 2 श्रेणी की परियोजनाओं जैसे सिंचाईं, रसायनिक खाद उत्पादन, बायोमेडिकल वेस्ट ट्रीटमेंट संयंत्र , हाइवे निर्माण आदि को शुरू करने के पहले पब्लिक कॉन्सल्टेशन की प्रक्रिया से मुक्त रखा गया है । साथ ही अगर कोई उद्योगिक परियोजना का विस्तार अपने पूर्ववर्ती आकार का 25 फीसदी से कम हो, तो फिर उसे EIA अध्ययन से दोबारा गुजरने की अवश्यकता नही होगी, यह तो अजीब मूर्खता हुयी कि परियोजनाओं का विस्तार हो व उससे पर्यावरण को भले ही नुकसान हो, परंतु ऐसी परियोजनाओं पर कोई प्रश्न उठे । खनन व नदी घाटी परियोजनाओं को मिलने वाली एनवायरनमेंटल क्लीयरेंस की वैधता की सीमा तक बढ़ा दी गयी है । परंतु, जो प्रावधान सबसे ज्यादा आपत्तिजनक है वह यह है कि अगर कोई परियोजना नियामको का उल्लंघन करती है तब भी वहाँ की जनता इस पर शिकायत दर्ज नही करा सकती है । सरकार इस मामले मे सिर्फ सरकारी संस्थाओं व उक्त उल्लंघनकर्ता की रिपोर्ट पर संज्ञान लेगी । अब इससे ज्यादा हास्यास्पद क्या हो सकता है !

क्या हमारे समक्ष अतीत के उदाहरण नही है जब स्टरलाइट , एस्सार जैसे कंपनियों ने अपनी परियोजनाओं के कारण पर्यावरण को रहे नुकसान की जानकारी छुपाई हो । ऐसे मे ऐसे उल्लंघकर्ताओं की रिपोर्ट को ही तरजीह देना कहाँ तक जायज है ? यहाँ यह बात भी स्पष्ट हो जाती है कि मौजूदा केंद्र सरकार ऐसे मसलों में जनता की सीधी भागीदारी को एकदम से खत्म कर रही है, जो कि गैर जनवादी है ।

कहने के लिए तो EIA के नए मसौदे को जनता की राय शुमारी के लिए 11 अगस्त तक खुला रखा गया था । परंतु, इसकी उम्मीद कम है कि सरकार मूल मसौदे मे ज्यादा बदलाव करेगी । गोदी मीडिया ने इस पूरे मामले मे चुप्पी सी साध रखी है व विपक्ष ने भी इसपर जुबानी जमाखर्ची के अतिरिक्त कुछ नही किया है । अगर EIA मे प्रस्तावित नए सुधार पारित हो गए, तो यह देश की प्राकृतिक संपदा के लिए विनाशकारी होंगे । इन नए सुधारों का विरोध करना अति आवश्यक है । साइंटिस्ट्स फॉर सोसाइटी इन पर्यावरण विरोधी बदलावों को विरोध करता है व मांग करता है कि केंद्र सरकार प्रस्तावित बदलावों को वापस लें ।

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