top of page

मुनाफे की हवस के कारण बढ़ती औद्योगिक दुर्घटनाएं

Writer's picture: Scientists for SocietyScientists for Society

Updated: Aug 7, 2020


आज हम एक ऐसी व्यवस्था में जी रहे हैं जहां विज्ञान द्वारा अर्जित किए गए तमाम ज्ञान का इस्तेमाल समाज की तरक्की के लिए नहीं बल्कि ज्यादा से ज्यादा मुनाफे के लिए होता है। प्रकृति का असीमित दोहन करके निजी मुनाफे के लिए हर संभव कोशिशें की जाती है। अंत में इसका खामियाजा पूरे समाज को ही भुगतना पड़ता है।

1984 की भोपाल गैस त्रासदी कि वह दर्दनाक रात आज तक भुलाई नहीं जा सकी है जिसमें यूनियन कार्बाइड की फैक्टरी से मीथेन आइसो साइनाइड गैस लीक होने से रातों रात 4000 से ज्यादा लोग मारे गए।लेकिन ऐसी घटनाएं रुक नहीं रही है सिर्फ हालिया कुछ दिनों में ही हमारे सामने कई ऐसी घटनाएं सामने आई है। फैक्ट्रियों के अंदर गुलाम बनाकर अमानवीय तरीके से रखे गए मजदूरों की आग लगने से मौत की खबरें लगतार हो रहीं हैं।इसके साथ ही बड़े प्लांट में गैस रिसाव का मामला भी लगातार आ रहा है।

अभी कुछ दिन पहले विशाखापट्टनम से खतरनाक गैस स्टेरिंग के लीक होने से कई मौतें हुई फिर खबर आई नेवेली से जहां कोयला बॉयलर में ब्लास्ट हुआ फिर रायगढ़ के पेपर मिल से गैस लीक हुआ और फिर खबर आई की सासन में अदानी की कोयले की खान से निकलने वाली कोयले की राख ने वहां के खेतों और तालाबों को खत्म कर दिया है और अब खबर आई है असम में तिनसुकिया जिले के बागजान गांव में स्थित ऑयल इंडिया लिमिटेड के तेल के कुएं से बीते 27 मई को इसके प्लांट के एक कुएं में अंदर दबाव अधिक हो जाने के कारण रिसाव शुरू हो गया, इससे ब्लोआउट कहते हैं।2 हफ्ते तक लगातार हुए रिसाव के बाद इस में आग लग गई जो अभी तक जारी है।यह इतनी भयंकर है कि करीब 30 किलोमीटर दूर से भी इसके धुएं देखे जा सकते हैं।विशेषज्ञों का कहना है कि इसे पूर्ण रूप से काबू करने में 4 हफ्ते लग सकते हैं।वहां के करीब 7000 लोगों पर इसका सीधा असर पड़ा है।आसपास के चाय बागान तबाह हो गए हैं, इसके साथ ही प्लांट से सटे डिब्रू सैखोवा नेशनल पार्क के वन्य जीवन पर बुरा प्रभाव पड़ा है।इसके साथ दो लोगों की मौत भी हो गई है।वहां के विलुप्त हो रही प्रजातियों पर अस्तित्व का संकट पैदा हो गया है। स्थानीय झील में डॉल्फिंस के शव भी देखे हैं।

लेकिन सवाल यह है कि क्या यह घटना महज एक हादसा है या टेक्निकल गलती है जैसा कि ऐसी घटनाओं के बाद प्रचारित किया जाता है। लेकिन इन घटनाओं का ठीक से विश्लेषण करें तो आसानी से समझ आ जाता है कि यह पूंजीवादी व्यवस्था की अवश्यंभावी परिणति है कि वह ऐसी घटनाओं को लगातार जन्म देती है।तिनसुकिया की घटना भी इसी बात को साबित करती है।इस घटना के पीछे का मुख्य सरकारी कंपनी ऑल इंडिया लिमिटेड का निजीकरण कहा जा सकता है।पूंजीवादी व्यवस्था में ज्यादा से ज्यादा मुनाफे के लिए कंपनियां लागत को कम से कम करना चाहती है और यही कारण है कि कंपनियां रखरखाव व वेस्ट पर खर्च करने से बचती हैं। जैसे ही सरकार सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों का निजीकरण करती है मुनाफे का यह धंधा शुरू हो जाता है।इस मसले में भी ऐसा ही हुआ है।

2016 में केंद्र सरकार ने असम के 12 सहित 67 छोटी ऑयल फील्ड की का निजीकरण किया। ऑल इंडिया लिमिटेड का समझौता गुजरात की कंपनी जॉन एनर्जी प्राइवेट लिमिटेड के साथ हुआ। उस समय भी वहां के कर्मचारी निजीकरण का विरोध कर रहे थे। इस घटना के बाद भी मौजूदा कर्मचारी सहित पूर्व कर्मचारी कंपनी पर आरोप लगा रहे हैं कि कंपनी रखरखाव व कर्मचारियों के प्रशिक्षण पर बहुत कम खर्च कर रही है। 

इसके साथ ही यह भी सवाल उठा रहे हैं कि हर ऑयल बेस्ट कंपनी को ब्लोआउट नियंत्रण करने वाली कंपनी के साथ सलाना समझौता करना होता है लेकिन इस कंपनी का किसी भी कंपनी के साथ कोई समझौता नहीं था।इसके साथ ही जब आग लगी तो चार्टर्ड प्लेन से मदद मंगवाने की जगह कोविड-19 पर देर होने के आरोप मढे गए। बेशक दोनों ही कंपनियों पर एफ आई आर हुए हैं मगर इस व्यवस्था में किस पर कितनी कारवाई होगी सब जानते हैं। जैसा कि भोपाल गैस त्रासदी में मारे गए हजारों लोगों के मौत के जिम्मेदार वारेन एंडरसन के साथ हुआ। छोटी आम धाराएं लगाकर उसे बचाया गया। बिना कोई सजा के वह अपने देश में आराम से रहा।

बात यहीं खत्म नहीं होती 1984 के इस त्रासदी के बाद 1986 में पर्यावरण सुरक्षा कानून बनाया गया। इसमें कोई भी कारखाना शुरू करने के पहले पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड से लाइसेंस लेना होता था। इसे एक अवधि पर रिन्यू करना होता था। इसके बाद 1994 और 2006 में एनवायरमेंट इंपैक्ट एसेसमेंट नोटिफिकेशन लाया गया।इसमें किसी कारखाने को लगाने के पहले उसके आसपास के लोगों और पर्यावरण पर असर की समीक्षा होनी होती थी और फिर जनता के साथ राय ली जानी होती थी।मगर अब पर्यावरण मंत्रालय पिछले 12 मार्च को EIA नोटिफिकेशन 2020 लाई है जिसमें बिना पूर्व एसेसमेंट के कारखाना खोला जा सकता है और बाद में जुर्माना देकर लाइसेंस लिया जा सकता है। और यह सब कुछ किया जा रहा है चंद लोगों के मुनाफे के लिए।


- आकाश आनंद



Comments


Scientists for Society
bottom of page