अल्बर्ट आइंस्टीन ने 1916 में अपने सपकेक्षिता के सिद्धांत के आधार पर दिक्-काल में त्वरित पिंडो के कारण होने वाली लहरों की हलचलों की परिकल्पना की जो द्रव्यमान को अप्रेक्षनीय मात्रा में धकेलती है | इन्हें ग्रुत्वाकर्ष्ण तरंगे या जी-वेव कहा जाता है | सापेक्षिता का सिद्धांत ग्रुत्वाकर्ष्ण की क्लासिकीय अवधारणा के बरक्स अपने आप में एक क्रांतिकारी विचार था और इसी कारण इसे बहुत विरोधो का सामना करना पड़ा था |
समय के साथ इस विचार की समझ बढ़ी और इसके पुर्वकथनो के सत्यापन; जैसे किसी भारी पिंड की वजह प्रकाश का मुड़ना, दुनिया भर के मस्तिष्को ने इस सिद्धांत को मान्यता दी | परन्तु, भी हाल तक एक भी ऐसा प्रेक्षण नही हुआ था जो जी-वेव्स का सत्यापन करता |
1974 में, टेलर और ह्युम के द्वारा एक द्विचर पल्सर के प्रेक्षण के जरिये अप्रत्यक्ष रूप से जी-वेव्स के होने का प्रमाण मिला व इस खोज के लिए उन्हें नोबेल पुरस्कार भी मिला | इन तरंगो के होने का पहला प्रत्यक्ष प्रमाण की घोषणा फरवरी,2016 में की गयी और यह उन्नत लीगो के प्रयोग से सम्भव हो पाया, इसमें दो इंटरफेरोमीटर, जिसमे से पहला हैनफोर्ड,वाशिंगटन तथा दूसरा,लिविन्गस्टोन,ल्यूसियाना में था, इनके एक साथ तारतम्यता में काम करने की वजह से यह सम्भव हो पाया |
इस वजह से 2017 का नोबेल पुरस्कार रीनर वीस,बेरी और कीप थोर्न को लीगो संसूचक और ग्रुत्त्वीय तरंगो के अवलोकन में महत्वपूर्ण योगदान के लिए संयुक्त रूप से दिया गया | नोबेल पुरस्कार को अधिकतम तीन लोगो को ही दिया जा सकता है और इस अवधारणा के प्रतिपादक यही तीन व्यक्ति थे ,परन्तु विश्वभर के उन इंजीनियरो और वैज्ञानिको के साझा प्रयासों की भी सराहना करनी होगी जो इस महत्वपूर्ण प्रयोग का हिस्सा थे, जिसने अवलोकनीय खगौलविज्ञान व ब्रहमांड विज्ञान में जिसने नए द्वार खोले, हमे अनुसंधान करने के लिए असंख्य नई अवधारणाओं की प्रदान की |
किन्तु,पहला प्रश्न : ग्रुत्त्वीय तरंगे है क्या ?
चलिए विद्युत चुम्बकत्व और ग्रुत्वाकर्ष्ण के बीच सम्द्दश्यता खींचते है | हमे यह पता है कि जब एक विद्युत आवेश जो त्वरित गति में हो विद्युत चुम्बकीय तरंग का निर्माण करता है; विद्युत चुम्बकीय क्षेत्र में विरूपण की लहरे दिक् और कल में अनुप्रस्थीय प्रकार से चलती है, यह अपने साथ उर्जा लेकर चलती है और मार्ग में पड़ने वाले पिंडो को परस्पर प्रभावित करते हुए आगे बढती है |
इस प्रकार से ग्रुत्वीय बल का स्त्रोत द्रव्यमान होता है | जब,एक पिंड त्वरित गति से वेग करता है, तो वह ग्रुत्वीय क्षेत्र में विरूपण की लहरों के तौर पर ग्रुत्वीय उर्जा उत्सर्जित करता है,जो प्रकाश की गति से उर्जा को लेकर अपने मार्ग में पड़ने वाले पदार्थों को धकेलते और खीचते हुए दिक्-काल में गमन करता है | हम जानते है कि ग्रुत्वाकर्ष्ण बल विद्युत चुम्बकीय बल से काफी कमजोर होता है, परिणामत: विद्युत चुम्बकीय तरंगो की तुलना में ग्रुत्वीय तरंगो द्वारा परिवाहित की गयी उर्जा नगण्य होती है, जिससे उनका प्रेक्षण काफी मुश्किल हो जाता है | अब जैसे , जब धरती चक्राकार पथ में सूर्य की परिक्रमा करती है तो यह गुरुत्वीय तरंगे उत्सर्जित करती है | लेकिन पूरी धरती के लिए गुरुत्वाकर्षण तरंगों का उत्पादन सिर्फ कुछ 100 वाट्स का है, जिसे मापा ही नही जा सकता | हमारा सूर्य भी गुरुत्वीय तरंगे छोड़ता है, जैसे वह विद्युत् चुम्बिकीय तरंगे चोदता है, परन्तु इसके स्वर ऊष्मा और प्रकाश के तौर पर उत्सर्जित की 400 मिलियन ट्रिलियन मेगावाट की तुलना में सिर्फ 79 मेगावाट की उर्जा गुरुत्वीय तरंगो द्वारा उत्सर्जित करता है | फिर से, यह मात्रा पहचाने जा पाने के लिए भी नाकाफी है |

खुशकिस्मती से, हमारे पास गुरुत्वाकर्षण तरंगो के मजबूत और बड़े स्रोत मौजूद हैं | एक ऐसे स्रोत को जोसफ टेलर और रसेल हल्से ने शुन्ध था, 1974 में एक बाइनरी पल्सर, अर्थात ऐसा पल्सर जो किसी दूसरे तारे की परिक्रमा करता, इस बात पर पक्का यकीं था की दूसरा तारा एक न्यूट्रॉन तारा है |
लीगो कहानी की शुरुआत

1960 के दशक में अमेरिकी और सोवियत वैज्ञानिकों ने गुरुत्वीय तरंगो की खोज के लिए लेज़र इंटरर्फोर्मेट्री (LASER Interferometry) के मूल विचार को प्रतिपादित किया } 1967 में रेनर विस ने लेज़र इंटरफोर्मेट्री का मूल्यांकन किया और अगले वर्ष कीप थरों ने इसकी सैधांतिक विकास की शुरुआत की | बहुत सारे प्रोटोटाइप इंटरफोर्मेटर भी दो दशकों के दौरान प्रस्तावित किये गए, लेकिन वे वित्त पोषण पाने में असफल रहे या वे आगे कोई तकनीकि योजना तैयार नहीं कर सके | हालाँकि, 1980 ने एन.एस.ऍफ़. (NSF) ने एम आई टी (MIT) के नेतृत्व में एक बड़ी इंटरफोर्मेट्री में अध्ययन को फंड किया और कैलटेक में एक 40 मीटर का प्रोत्य्पे बनाया गया | NSF के दबाव में बड़े संसथान एक साथ आये और लीगो पहल पर नेतृत्व किया | 1994 में, जब बेरी बेश प्रयोगशाला निदेशक के तौर पर आये, तब लीगो को यह बताया गया की फंडिंग पाने के लिए यह इसका आखिरी प्रयास था, परन्तु एक संशोधित सैद्धांतिक, बजट और प्रोज़ेक्ट प्लान हरी बत्ती और फंडिंग पाने में सफल रहा | 395 मिलियन डॉलर पर यह प्रोज़ेक्ट, पहली बार 1994 में धरातल पर उतरा और इसका निर्माण 1997 में पूरा हुआ |
2002 से 2010 तक हुए शुरूआती परीक्षणों में लीगो ने कोई गुरुत्वीय तरंगे ज्ञात नही किये | इसलिए इसे उपकरणों में सुधर के लिए बंद कर दिया गया, जिससे इसकी संवेदनशीलता एक मात्रा तक बढ़ी | यह सितम्बर 2015 था, जब लीगो दूसरे भाग में शुरू हो पाया |

इसी समय, इस इटली में स्थापित लेज़र इंटरफोर्मेटर, वर्गो (VIRGO) ने भी 2015 में गुरुत्वीय तरंगे पता लगाने के लिए काम शुरू किया |
इसमें शामिल वैज्ञानिको को अपार ख़ुशी हुयी, जब 14 सितम्बर 2015 इसने पहला सिग्नल पता किया, जो सौर द्रव्यमान से 29 और 36 गुना बड़े दो विशाल ब्लैक होल के मिलने से पैदा हुआ था | ये मिलकर एक अत्यंत विशाल ब्लैक होल बन गया जिसका वजन सौर द्रव्यमान का 62 गुना, जो 1.3 खरब प्रकाश वर्ष की दूरी ब्रह्माण्ड के एक कोने में हुआ | इसके कारन गुरुत्वीय तरंगे उत्सर्जुत हुयीं, जो 3 सौर द्रव्यमान के बराबर था | ये परिणाम 11 फरवरी 2016 को प्रकाशित किये गए जिसमे लीगो तथा वर्गो के वैज्ञानिक सहयोग ने गुरुत्वीय तरंगो के प्रत्यक्ष डिटेक्सन को पक्का किया | नवम्बर 2017 तक, लीगो ने इसी तरह के सिग्नलों के चार डिटेक्सनों के घोषणा की है |
लीगो की संरचना
लीगो में दो इंटरफोर्मेटर है, एक हेन्फोर्ड वाशिंगटन थे और दूसरा लिविन्ग्स्टोन, लुसियाना में, जिनके बीच की दूरी प्रकाश के चार समय के 10 मिलिसेकंड के बराबर होता है | संभवतः 2400 मिल हर प्राइमरी इंटरफोर्मेटर में 2-4 किमी लम्बी लाइने एक दुसरे से ओर्थोगोनल हैं जो परिक्षण द्रव्यमान को प्रतिस्थापित करता है, जिससे रीसाइकल्ड उर्जा वाला माईकल्सन इंटरफोर्मेटर बनता है | एक पूर्व-स्थापित Nd:YAG लेज़र सोत से 20 वाट शक्ति का 1064 nm तरंग-धैर्य वाला करांग उत्सर्जित होता है | आंशिक रूप से – प्रतिबिंबित वाले दर्पणों के प्रयोग से, फेबरो-पेरोट प्रतिध्वनि-गुहाएँ दोनों भुजाओं पर निर्मित की जाति हैं, जुस्से परकश की किरण द्वारा तय की गई दूरी का मान बढ़ जाता है | 4 किमी की भुजा पर 280 व्हाक्कर पूरे करने के बाद वे बीम स्पिल्टर पर मिलते हैं | उपकरण को इस प्रकार रखा जाता है कि ये दो प्रकाश-पुंज चरण के बहार होते हैं और विध्वंशक रूप से हस्तक्षेप करते हैं और फोटोडायोड पर कोई प्रकाश नहीं पड़ता है |

अब, जब गुरुत्वीय तरंगे इंटरफोर्मेटर से होकर गुजरता है, यह दोनों भुजाओं में मौजूद परिक्षण-द्रव्यमानों की उत्तेजित करता है, इससे भुजाएं बहुत ही कम मात्र में छोटी व लम्बी होती हैं, इससे प्रकाश-पुंज थोड़ा-सा चरण के बहार चला जाता है, जिससे प्रतिध्वनि होती है और फोटोडायोड पर प्रकाश डिटेक्ट होता है | दोनों इंटरफोर्मेटर से मिले परिणामो की तुलना और विश्लेषण करने पर पाया गया कि ये एक-सामान हैं, इससे यह साबित हो गया की परिक्षण-द्रव्य्मानो का संचलन एक ही किस्म के विरूपम के कारण है, न की किसी भूकंपीय या मानव गतिविधि के कारण |
हर परिक्षण-द्रव्यमान में बेहद सवेदनशील सेंसर लगे हुए थे, जो 1 एटोमीटर (10-18 – 10-19 m) तक की किसी करकट को माप सकते थे | ये सेंसर्स 1 प्रोटोन के दस हजारवें हिस्से के बराबर विस्थापन तक को माप सकते हैं | यह अल्फा सेंचुरी तक की दूरी को बाल के बराबर सूक्ष्मता से मापने के बराबर है | लेकिन इस अति संवेदनशीलता की एक खामी भी थी, ये सिग्नल सेस्मिक गतिविधियों या ट्रैफिक से भी बाधित हो सकते थे | इसके प्रभाव को ख़त्म करने के लिए परिक्षण-द्रव्यमानो को सक्रिय और निष्क्रिय उदासीनता वाले उपायों से लैस किया गया | सक्रिय उदासीनता उसी तरह काम करता है जिस तरह से शोर कम करने के लिए हैडफ़ोन काम करता है, ऐसा सेंसर लगाया जाता है जो आस-पास के शोर को मापता है और उपकरण को इस शोर को नकारने के बारे में सूचित करता है | दूसरा, यह सिस्टम ऐसे किसी भी हरकत को परिक्षण-द्रव्यमान तक पहुँचने से रोकता है, जो सक्रिय सिस्टम द्वारा विरोध नही किया गया है | परिक्षण-द्रव्यमान (दर्पण) को 4 चरण पेंडुलम जिसे क्वाड (quad) कहा जाता है, उसे लटकाया जाता है | इसे 0.4 mm मोटी फ्यूज़ड सिलिका ग्लास फाइबर से लटकाया जाता है | चार वाइब्रेशन डैम्पिंग द्रव्यमान भी पेंडुलम में मौजूद होता है, जो वाइब्रेशन अवशोषित कर लेता है | मुख्य जंजीर वाला हिस्सा लेज़र बीम की ओर होता है, जब प्रतिक्रिया-द्रव्यमान वाला हिस्सा परिक्षण-द्रव्यमान को खागौलिय स्रोतों से नहीं आने वाले शोर के बावजूद स्थिर रखता है | जड़त्व के कारण, इन द्रव्यमानों का वजन भी वाइब्रेशन को डैम्प करने में सहायता करता है |
इसलिए जो भी हरकत परिक्षण-द्रव्यमान से मापी जाति है, वह सिर्फ दिक्-काल में गुरुत्वीय तरंग के कारन हुयी हरकत में ही होता है |
अच्छा, तो आइन्स्टाइन सही थे ; पर गुरुत्वीय तरंगें क्यों महत्वपूर्ण हैं ?
गुरुत्वीय तरंग खागौलविज्ञान में एक ने युग की शुरुआत करेगा | अतीत में खागौलविज्ञान में की गयी ज्यादातर खोजें विद्युत चुम्बकीय विकिरण (दृश्य प्रकाश, रेडियो तरंग, एक्स-रे, आदि), अलग-अलग प्रकारों पर निर्भर रही है | परन्तु, विद्युत चुम्बकीय तरंगें स्रोत और हमारे बीच होने वाले किसी भी पदार्थ से आसानी से परिवर्तित और अवशोषित हो जाती है | यहाँ तक की प्रकाश भी जब धरती के वायुमंडल में मौजूद गैस के बादलो से होकर गुजरता है, प्रकाश का कुछ हिस्सा अवशोषित हो जाता है और यह प्रेक्षित नही हो पाता है |

वह भौतिकी जो गुरुत्वीय तरंगो के निर्माण में लगी है, तरंग में ही कूटबद्ध है | इस सूचना को पाने के लिए गुरुत्वीय संसूचक रेडियो की तरह ही काम करेंगे | जिस तरह रेडियो, रेडियो-तरंगो में कूटबद्ध संगीत को उद्धरित करता है- लीगो भी गुरुत्वीय तरंग अवशोषित करके, उसे बाद में विकूटित कर उसके भौतिक अस्तित्व की जानकारियाँ निस्सारित कर पायेगा | इस तरह से लीगो सही मायनों में एक वेधशाला है, हालांकि इसमें परम्परागत टेलिस्कोप नही है | परन्तु, ग्रुत्वीय तरंगो के अनुसन्धान के लिए आवश्यक आंकड़ो के विश्लेषण की परम्परागत मात्रा प्रकाशीय टेलेस्कोप की तुलना में ज्यादा है, इसलिए वास्तविक समय में गुरुत्वीय तरंग का प्रेक्षण भी सम्भव नही है | अत: संसूचक आंकड़ो का एक लेखा-जोखा रखता है | इसलिये लीगो परम्परागत वेधशालाओं से सहयोग करते वक्त एक फ़ायदा देता है, चूँकि लीगो में “रिवाइंड” की सुविधा है जो टेलेस्कोपो में नही है | एक सुपरनोवा की कल्पना करे जिसे शुरूआती विस्फोट के बाद प्रेक्षित किया गया है | लीगो शोधकर्ता सुपरनोवा की शुरुआत के वक़्त बने गुरुत्वीय तरंग की खोज के लिए आंकड़ो में पीछे जा सकते है |
- अर्नव पुष्कर (अंग्रेजी से अनुवाद - विवेक कुमार)
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