top of page

साइंटिस्ट्स फॉर सोसाइटी के द्वारा “विज्ञान के विकास का विज्ञान“ विषय पर व्याख्यान व संवाद सत्र का आयोजन किया गया | इस कार्यक्रम में विज्ञान पत्रिका “द स्पार्क” का विमोचन भी किया गया |

13 September 2017

साइंटिस्ट्स फॉर सोसाइटी के द्वारा पटना साइंस कॉलेज के भौतिकी विभाग में “विज्ञान के विकास का विज्ञान“ विषय पर व्याख्यान व संवाद सत्र का आयोजन किया गया | इस कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के तौर पर दिल्ली विश्वविद्यालय के शोधार्थी सनी सिंह को आमंत्रित किया गया था | सनी ने अपने व्याख्यान में बताया कि 21 वीं शताब्दी में आधुनिक विज्ञान में अदभुत गति से प्रगति हुयी है। लीगो के प्रयोग से हम गुरुत्व तरंगों का अध्ययन कर मानो ब्रह्माण्ड की सरसराहटों को सुन पा रहे हैं, तो जिनेवा में पदार्थ की सूक्ष्मतम स्तर को चीरकर परख रहे हैं। कृत्रिम कोशिका से लेकर सर्न और लीगो के प्रयोग मानव ज्ञान के वे शिखर हैं। विज्ञान की इतिहास यात्रा का सबसे महत्वपूर्ण मोड़ यूरोप में पुनर्जागरण काल में आया जब उस काल में यूरोप की धरती ने विज्ञान को व्यवस्थित तौर पर विकसित किया जिसे इंग्लैंड में शुरू हुयी औद्योगिक क्रांति से ज़बरदस्त धक्का मिला। विज्ञान व तकनोलॉजी का निर्बंध विकास हुआ। 20 वीं शताब्दी तक क्वांटम भौतिकी, सापेक्षिता सिद्धांत, उद्विकास के सिद्धांत परिष्कृत और साबित किये जा चुके थे। वहीं आर्यभट्ट और भास्कर की उच्चतर वैज्ञानिक परंपरा के देश भारत को ब्रितानवी ग़ुलामी के 200 सालों के बाद आज़ादी मिली तब अपनी संस्कृति और ज्ञान से कटे हुए देश को एक बार फिर आधुनिक विज्ञान में पुनर्पाठीत होना पड़ा है। कुल मिलकर कहें तो सम्पूर्ण विश्व इतिहास में विज्ञान की इतिहास में यह यात्रा एकरेखीय या सुगम नहीं रही है बल्कि जबरदस्त घात प्रतिघात, अनगिनत बहसों और प्रयोगों की अग्नि परीक्षा में तपकर यहाँ तक पहुंची है। हमें विज्ञान का अध्ययन इस रोशनी में करना चाहिए। हर मौजूदा नज़रिये को चुनौती देते ये वैज्ञानिक अपने-अपने स्पेस-टाइम (दिक् व काल) में दुनिया को नयी नज़र दे रहे थे। डार्विन की नाव की यात्रा ने मनुष्य को ख़ुद से अवगत कराया तो असीम ब्रह्मण्ड को आइन्स्टीन अपनी ऊँगलियों के बीच कलम से लिखे समीकरणों से चित्रित कर रहे थे और उसे अपने ‘थॉट एक्सपेरिमेण्ट्स’ में जाँच रहे थे। परन्तु इनके जीवन के समय में पैदा हुए सिद्धान्त उनके समय में ही पैदा हो सकते थे। क्योंकि ये उस समय की ज़रूरत थी। । विज्ञान इतिहास के अलग-अलग मंज़िलों जैसे कि आदिम समाज, दास व्यवस्था, सामन्तवाद, विभिन्न प्राक्-पूँजीवादी सामाजिक संरचनाओं और पूँजीवाद तक विकसित होता हुआ आया और समाजवाद के लघुजीवी प्रयोगों में भी विज्ञान ने अद्भुत रफ्तार से तरक्की की। विज्ञान की इस इतिहास यात्रा पर जाए बिना हम विज्ञान के विज्ञान को नहीं ढूंढ सकते हैं। विज्ञान का विज्ञान दरअसल मानव इतिहास में छुपा है जिसे समझकर ही हम आगामी यात्रा पर बढ़ सकते हैं। व्याख्यान के बाद संवाद सत्र भी हुआ जिसमे उपस्थित छात्र- छात्राओं ने बढ़ चढ़ कर भागीदारी की | इस कार्यक्रम में पटना वि.वि के कई छात्र छात्राएं उपस्थित रहे | उपस्थित लोगो में प्रो.एस.सी मिश्रा, प्रो. अशोक कुमार , देबाशीष बराट, रामस्वरूप कुमार आदि प्रमुख थे | इस कार्यक्रम में विज्ञान पत्रिका “द स्पार्क” का विमोचन भी किया गया | इसके साथ ही विषय से सम्बन्धित पोस्टरों की प्रदर्शनी का भी लगाई गई |

Scientists for Society
bottom of page