नौजवान भारत सभा द्वारा संचालित शहीद भगतसिंह पुस्तकालय मे साइंटिस्टस फॉर सोसायटी द्वारा उद्विकास के सिद्धांत व धरती पर जीवन के उदय के विषय पर आख्यान का आयोजन किया गया।
3 July 2020




विगत 3 जुलाई को नौजवान भारत सभा द्वारा संचालित शहीद भगतसिंह पुस्तकालय मे साइंटिस्टस फॉर सोसायटी द्वारा उद्विकास के सिद्धांत व धरती पर जीवन के उदय के विषय पर आख्यान का आयोजन किया गया। इसमे डॉ. सनी सिंह मुख्य वक्ता के तौर पर शामिल थे। डॉ. सनी सिंह ने कहा कि चार्ल्स डार्विन ने उद्विकास के सिद्धांत मे क्रमिक विकास की अवधारना पर अतिशय बल दिया है, गुणात्मक छलांगो के विषय पर इस सिद्धांत विसंगतियाँ सामने आती है। आज भी नये तथ्यों के सामने आने पर, उद्विकास के सिद्धांत मे परिवर्तन किये जा रहे है, स्टीफेन जे गुल्ड, लेवोंटिन जैसे जीवविज्ञानियों ने इस बारे मे काफी कुछ लिखा है। आगे उन्होंने कहा कि जीवन के उद्भव की अवधारणा पर डार्विन के बाद काफी काम हुआ, 19 वीं सदी के अंत तक यह परिकल्पना आ चुकी थी कि धरती पर जीवन की शुरूआत किसी दैविक शक्ति द्वारा नही अपितु जैव रसायनिक अभिक्रियाओ के कारण हुई थी। 20 वीं सदी के मध्य मे ,कुरसनोव, ओपारिन व हालडेन ने इस विषय पर काफी शोध किया और जीवन की उत्पत्ति के लिए जैविक यौगिको की महत्ता पर प्रकाश डाला। फिर 1953 मे हुए मिलर - उरे प्रयोग ने इस दिशा मे कई परतो को उजागर किया,इस प्रयोग ने सिद्ध किया कि किस प्रकार मीथेन, अमोनिया व जल वाष्प जैसे अवयव जो धरती पर मौजूद थे, उनसे जैविक रसायानो का निर्माण हुआ होगा, जिससे अमीनो अम्ल व प्रोटीन भी निर्मित हुए होंगे , और एक प्रक्रिया मे कोशिकाओं का निर्माण भी इसी से हुआ होगा। उन्होंने आगे बताया कि जीवन के जो मौलिक गुण है जैसे खुद के रूप की प्रतिलिपी बना पाने की क्षमता व किसी बाह्य पदार्थ को ग्रहन कर उसे ऊर्जा मे तब्दील करने के गुण जैव रसायनिक प्रक्रिया मे ही उभरे थे। अभी भी इस विषय मे काफी शोध किया जा रहा है, कई नयी जानकारियां भी सामने आ रही है।
आख्यान के उपरांत इंटरएक्टिव सत्र भी रखा गया, जिसमे छात्र - छात्राओं ने वक्ता से विषय से संबंधित प्रश्न भी पूछे।